गुण वैशेषिक दर्शन के सप्तापदार्थों में से द्वितीय पदार्थ है। गुण की विशेषता है कि गुण द्रव्य के आश्रित होते हैं। द्रव्य में रहते हैं तथा स्वयं निर्गुण एवं निष्क्रिय होता है। गुण की परिभाषा […]
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वैशेषिक दर्शन के प्रमुख आचार्य एवं उनके ग्रन्थ
वैशेषिक दर्शन: सामान्य परिचय भारतीय दर्शन परम्परा के अंतर्गत षड्दर्शन में वैशेषिक एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है । वैशेषिक दर्शन का परमाणुवाद सृष्टि की अत्यंत वैज्ञानिक परिकल्पना प्रस्तुत करता है । वैशेषिक दर्शन के प्रवर्तक […]
सत्कार्यवाद–Satkaryvad
मनुष्य प्रारंभ से ही सृष्टि की उत्पत्ति का कारण एवं जीवन का सत्य जानने के लिए उत्सुक रहा है। जिज्ञासु रहा है। उसकी इसी जिज्ञासावृत्ति ने विभिन्न दर्शनधाराओं का सूत्रपात किया। जब किस तत्त्व के […]
विवर्तवाद
विवर्तवाद अद्वैतवेदान्त का कार्य-कारणवाद है। अद्वैत वेदान्त के प्रवर्तक आचार्य शंकर ने आकाशादि प्रपंचमय जगत् को कार्य एवं ब्रह्म को कारण कहा है। उन्होंने प्रपंचमय जगत् एवं कार्णरूप ब्रह्म मे अनन्यनत्व स्थापित किया है। परन्तु […]
परिणामवाद
परिणामवाद वस्तुतः सत्कार्यवाद का ही एक प्रकार है। सांख्य दर्शन का सत्कार्यवाद को परिणामवाद कहते हैं। ये कार्य को नवीन न मानकर परिणाम मानते हैं। सांख्य-योग का परिणामवाद प्रकृति-परिणामवाद कहलाता है। इसमें विश्व को प्रकृति […]
षड्विधसन्निकर्ष
तर्कसंग्रह में अन्नमभट्ट ने न्यायदर्शन के अनुसार चार प्रमाण स्वीकार किये हैं – प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शब्द।इन्द्रियार्थसन्निकर्ष का प्रसंग प्रत्यक्ष प्रमाण के अंतर्गत आता है। प्रत्यक्ष का लक्षण करते हुये अन्नमभट्ट लिखते हैं कि –तत्र […]
आचार्य अभिनवगुप्त
आचार्य अभिनवगुप्त साहित्य के विद्यार्थियों और नाट्यशास्त्र के अध्येताओं के लिये एक सुपरिचित व्यक्तित्व हैं। आचार्य अभिनवगुप्त भरतमुनिप्रणीत नाट्यशास्त्र के टीकाकार, काव्यशास्त्रमर्मज्ञ और प्रमुख शैवाचार्य हैं। उन्होंने भारतीय काव्यशास्त्र के एक प्रमुख सिद्धान्त ’ध्वनिसिद्धान्त’ के […]