शरीर के आवश्यक और स्वाभाविक वेगों को नहीं रोकना चाहिये। आयुर्वेद इन वेगों को रोकने का निषेध करता है । परन्तु व्यक्ति देश-काल-परिस्थिति के अनुसार इन वेगों को कभी न कभी रोकता ही है।कुछ लोगों का तो स्वभाव ही बन जाता है रोकना।
सामाजिक रूढ़ियाँ भी इसमें अपनी भूमिका निभाती हैं । इन वेगों को तहजीब, तमीज और संस्कार से छोड़कर देखा जाता है । इसलिये अनेक बार व्यक्ति न चाहता हुआ भी देश काल देखकर इन्हें रोकने का प्रयास करता है । वह उस समय यह नहीं जान रहा होता कि वह अपना जीवन खतरे में डाल रहा है ।
ऐसे ही एक वेग मल/पुरीष का वेग है। जिसे कदापि नहीं रोकना चाहिये उसको रोकने से गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
अष्टांगहृदयम् में कहा गया है कि मल का वेग रोकने से पिंडलियों में ऐंठन, सर्दी, जुकाम, सिर में दर्द, डकार आना, गंभीर पीड़ा हो सकती है ।
हृदय गति भी रुक सकती है । वहाँ यहाँ तक कहा गया है कि मल ऊपर के रास्ते निकल सकता है मुँह से। अपानवायु को रोकने से होने वाले रोग भी होते हैं :-
शकृतः पिण्डिकोद्वेष्टप्रतिश्यायशिरोरुजः। ऊर्ध्ववायु परीकर्तो हृदयस्योपरोधनम्। मुखेन विट्प्रवृत्तिश्च पूर्वोक्ताश्चामयाः स्मृताः।
मलवेग रोकने से होने वाल समस्यायें :-
- अपानवायु /Fart रोकने से होने वाली समस्यायें मल रोकने से भी होती हैं ।
- मल रोकने से बवासीर होता है।
- मंदाग्नि से व्यक्ति पीड़ित हो सकता है अर्थात् भूख कम हो जाती है ।
- चित्त उद्विग्न रहता है। बेचैन रहता है।
- सिरदर्द हो सकता है ।
- आधाशीशी/अधकपारी की पीड़ा होती है ।
- भूख मर जाती है ।
- पेट में दर्द हो सकता है ।
- वायु जनित पीड़ा पूरे शरीर में कहीं भी हो सकती है । विशेषकर कंधों में।
- मिर्गी जैसी गंभीर बीमारी भी हो सकती है ।
- गंभीर कब्ज हो सकती है ।
- स्मरण शक्ति का ह्रास होता है। भूलने की बीमारी हो जाती है ।
अतः मलावरोध से बचना चाहिये।