गुण वैशेषिक दर्शन के सप्तापदार्थों में से द्वितीय पदार्थ है। गुण की विशेषता है कि गुण द्रव्य के आश्रित होते हैं। द्रव्य में रहते हैं तथा स्वयं निर्गुण एवं निष्क्रिय होता है।
गुण की परिभाषा
गुण को परिभाषित करते हुये विश्वनाथ ने कहा है कि गुण द्रव्याश्रित है, निर्गुण एवं निष्क्रिय है।
अथ द्रव्याश्रिता ज्ञेया निर्गुणा निष्क्रिया गुणाः।
विश्वनाथ
अन्नमभट्ट ने दीपिका में द्रव्य को परिभाषित किया है कि द्रव्य एवं कर्म से भिन्न जो जातिस्वरूप अर्थात् सत्तात्मक तत्त्व होता है वह गुण है। गुणत्व जातियुक्त गुण है।
द्रव्यकर्मभिन्नत्वे सति सामान्यवान् गुणः। गुणत्वजातिमान् वा
तर्कसंग्रह दीपिका
वैशेषिक दर्शन के प्रतिष्ठापक आचार्य कणाद ने वैशेषिक दर्शन के आधारग्रंथ ‘वैशेषिक सूत्र’ में मात्र सत्रह (१७) गुणों का उल्लेख किया था। बाद में वैशेषिक सूत्र के भाष्यकार प्रशस्तपाद ने प्रशस्तपादभाष्य/पदार्थधर्मसंग्रह उन सत्रह गुणों में सात (७) गुण और जोड़े। इसप्रकार वर्तमान में वैशेषिक दर्शन में कुल चौबीस (२४) गुण प्राप्त होते हैं ।तर्कसंग्रह में इन्हीं चौबीस गुणों का उल्लेख है।
वैशेषिक दर्शन/तर्कसंग्रह में गुण
वैशेषिक दर्शन में चौबीस गुणों को परिगणित किया गया है ।-
- रूप-चक्षुर्मात्रग्राह्यो गुणो रूपम्। मात्र चक्षु के द्वारा ग्रहण होने वाला गुण रूप हैरूप सात प्रकार का है।
- रस-
- गन्ध
- स्पर्श
- संख्या
- परिमाण
- पृथक्त्व
- संयोग
- विभाग
- परत्व
- अपरत्व
- गुरुत्व
- द्रवत्व
- स्नेह
- शब्द
- बुद्धि
- सुख
- दुःख
- इच्छा
- द्वेष
- प्रयत्न
- धर्म
- अधर्म
- संस्कार
इन चौबीस गुणों में संस्कार त्रिविध (तीन प्रकार) का है
- वेग
- भावना
- स्थितिस्थापक
द्रवत्व दो प्रकार का है-
- सांसिद्धिक द्रवत्व
- नैमित्तिक द्रवत्व
इन चौबीस गुणों को दो भागों में विभाजित किया गया है – विशेष गुण एवं सामान्य गुण ।
द्रव्यों के भेदक गुण को विशेष गुण कहते हैं । चौबीस में से सोलह गुण विशेष गुण कहलाते हैं –
- रूप
- रस
- गंध
- स्पर्श
- स्नेह
- सांसिद्धिक द्रवत्व
- बुद्धि
- सुख
- दुःख
- इच्छा
- द्वेष
- प्रयत्न
- धर्म
- अधर्म
- शब्द
- भावना नामक संस्कार
दो या दो से अधिक द्रव्यों में एक साथ रहने वाले गुण सामान्य गुण हैं ।सामान्य गुण ग्यारह हैं-
- संख्या
- परिमाण
- पृथक्त्व
- संयोग
- विभाग
- परत्व
- अपरत्व
- गुरुत्व
- नैमित्तिक द्रवत्व
- वेग नामक संस्कार
- स्थितिस्थापक संस्कार
इन्द्रियग्राहकता के आधार पर गुणों का विभाजन
गुणों का प्रत्यक्ष इन्द्रियों द्वारा होता है ।
द्वीन्द्रियग्राहकयगुण (१०)
ऐसे गुण जिनका प्रत्यक्ष दो इन्द्रियों द्वारा होता है ।
- संख्या
- परिमाण
- पृथक्त्व
- संयोग
- विभाग
- परत्व
- अपरत्व
- द्रवत्व
- स्नेह
- वेग एवं स्थितिस्थापक संस्कार
बाह्येन्द्रिय ग्राहय गुण (५)
- रूप
- रस
- गन्ध
- स्पर्श
- शब्द
अतीन्द्रिय गुण /इन्द्रिय द्वारा न जाने जा सकने वाले गुण (४)
- गुरुत्व
- धर्म
- अधर्म
- भावना नामक संस्कार
अंतरिन्द्रियगुण (६)
अन्तरिन्द्रिय गुण केवल मन द्वारा ग्राह्य होते हैं ।
- बुद्धि
- सुख
- दुःख
- इच्छा
- द्वेष
- प्रयत्न
प्रशस्तपाद के अनुसार गुणों का वर्गीकरण
मूर्तगुण (११)
- रूप
- रस
- गंध
- स्पर्श
- परत्व
- अपरत्व
- गुरुत्व
- द्रवत्व
- स्नेह
- वेग नामक संस्कार
- स्थितिस्थापक संस्कार
अमूर्तगुण (१०)
- बुद्धि
- सुख
- दुःख
- इच्छा
- द्वेष
- प्रयत्न
- धर्म
- अधर्म
- शब्द
- भावना नामक संस्कार
उभय गुण /मूर्तामूर्त गुण (५)
- संख्या
- परिमाण
- पृथक्त्व
- संयोग
- विभाग
चौबीस गुणों का नौ द्रव्यों के अंतर्गत वर्गीकरण
गुण द्रव्यों में ही रहते हैं । भाषापरिच्छेद में चौबीस गुण नौ द्रव्यों के अंतर्गत वर्गीकृत हैं ।
पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, काल, दिक्, आत्मा एवं मन ये नौ द्रव्य हैं। पृथ्वी में चौदह, जल में चौदह, तेज में ग्यारह, वायु में नौ, आकाश में छः, काल एवं दिक् में पाँच-पाँच, आत्मा में चौदह एवं मन में आठ गुण होते हैं ।
पृथ्वी (१४)
जल के प्रथम तेरह गुण एवं गन्ध
- स्पर्श
- संख्या
- परिमाण
- पृथक्त्व
- संयोग
- विभाग
- परत्व
- अपरत्व
- रूप
- सांसिद्धिक द्रवत्व
- वेग नामक संस्कार
- गुरुत्व
- रस
- गंध
जल (११)
तेज के ग्यारह गुण (सांसिद्धिक द्रवत्व), गुरुत्व रस एवं स्नेह
- स्पर्श
- संख्या
- परिमाण
- पृथक्त्व
- संयोग
- विभाग
- परत्व
- अपरत्व
- रूप
- सांसिद्धिक द्रवत्व
- वेग नामक संस्कार
- गुरुत्व
- रस
- स्नेह
तेज (११)
वायु के प्रथम आठ गुण, रूप, नैमित्तिक द्रवत्व तथा वेग। रूप एवं स्पर्श तेज का विशेष गुण है।
- स्पर्श
- संख्या
- परिमाण
- पृथक्त्व
- संयोग
- विभाग
- परत्व
- अपरत्व
- रूप
- नैमित्तिक द्रवत्व
- वेग नामक संस्कार
वायु (9)
- स्पर्श (वायु का विशेष गुण)
- संख्या
- परिमाण
- पृथक्त्व
- संयोग
- विभाग
- परत्व
- अपरत्व
- वेग नामक संस्कार
आकाश (६)
- संख्या
- परिमाण
- पृथक्त्व
- संयोग
- विभाग
- शब्द – (आकाश का विशेष गुण )
काल एवं दिक् (५)
- संख्या
- परिमाण
- पृथक्त्व
- संयोग
- विभाग
आत्मा (१४)
- बुद्धि (आत्मा का विशेष गुण)
- सुख
- दुःख
- इच्छा
- द्वेष
- प्रयत्न
- संख्या
- परिमाण
- पृथक्त्व
- संयोग
- विभाग
- संस्कार
- धर्म
- अधर्म
मन (८)
- संख्या
- परिमाण
- पृथक्त्व
- संयोग
- विभाग
- परत्व
- अपरत्व
- वेग नामक संस्कार
अतः गुण सदैव द्रव्य के आश्रित होते हैं। स्वयं निर्गुण एवं निष्क्रिय रहते हैं अर्थात् गुण में गुण नहीं रहता और न ही क्रिया रहती है। गुणत्व जाति से युक्त होते हैं । गुण अपने कार्य का असमावायिकारण है। गुण द्रव्य में समवाय संबंध से रहते हैं । गुण अपने कार्य का असमावायिकारण है।