
आईये जानते हैं खाँसी-जुकाम से बचने और उसे ठीक करने के उपाय। वातावरण में परिवर्तन से प्रायः खाँसी-जुकाम होना सामान्य सी बात है । अनेक व्यक्तियों को बात-बात पर जुकाम होता है और तुरन्त ध्यान न दिये जाने पर बढ़ जाता है तथा कष्टकारी होता है ।
जुकाम अनेक बार खाँसी को भी साथ लेकर आता है । इसके साथ ही बंद नाक, गले में खराश, आँखों में पीड़ा, सिर में दर्द ओर अनेक बार साइनस जैसी समस्या भी होती है। ऐसे में परेशान होकर व्यक्ति अस्पताल की तरफ भागता है।
जहाँ कुछ दवायें तो उसे मिलती हैं जिससे आराम मिलता है पर सर्दी-जुकाम-खाँसी से पूरी तरह छुटकारा नहीं मिलता। यदि एक बार मिल भी जाता है तो कुछ ही दिन बाद फिर से सर्दी-जुकाम की पुनरावृत्ति होती है ।
ऐसे में आईये जानते हैं आयुर्वेद के कुछ बहुप्रचलित और अनुभूत उपाय:-
भटकटैया का काढ़ा
भटकटैया के पंचांग अर्थात् फूल, पत्ती, फल, तना और जड़ का काढ़ा पुरानी और नयी किसी भी प्रकार की खाँसी को जड़ से दूर करने वाला है । इस काढे के मात्र एक या दो खुराक सेवन से ही सेवन से कफ बाहर निकल जाता है और व्यक्ति स्वस्थ हो जाता है । इसे बनाने और सेवन की विधि यहाँ देखें- भटकटैया का काढ़ा
पिप्पली का चूर्ण मधु (शहद) के साथ
पिप्पली का चूर्ण मधु के साथ प्रातः सेवन करने से गला साफ होता है। कफ निकलता है। और जुकाम-खाँसी यहाँ तक की बुखार भी ठीक होता है।
बच्चों को जुकाम, खाँसी, कफ, जकड़न आदि होंने पर इसका चूर्ण मधु के साथ छः माह के छोटे बच्चों को भी चटाया जा सकता है । बस इतना ध्यान रखना चाहिये कि मात्रा अधिक न हो।
ऐसे व्यक्ति जिनका शरीर कफप्रकृति का है और बार-बार जुकाम-खाँसी से पीड़ित रहते हैं । उन्हें शीतऋतु (सर्दियों) में और जब मौसम बदल रहा हो जैसे फरवरी मार्च, जून-जुलाई, सितम्बर-अक्टूबर में पिप्पली का शहद के साथ नियमित प्रातःकाल सेवन करना चाहिए । ऐसा करने से वे जुकाम आदि से बचे रहेंगे।
यदि किसी कारणवश मधु न उपलब्ध हो तो गुड़ के साथ भी पिप्पली का सेवन किया जा सकता है ।यदि व्यक्ति इसे चाटना न चाहता हो तो वह इसे उबालकर ग्रीन टी की तरह पी सकता है ।
ध्यान रहे कि एक बार में इसके सेवन की मात्रा एक चौथी छोटे चम्मच या एक चुटकी से अधिक नहीं होनी चाहिये।
कालीमिर्च
कालीमिर्च कंठ का शोधन करती है तथा व्यक्ति को सर्दी-जुकाम सहित बहुत से संक्रमणों से बचाती है।
सर्दी-जुकाम-खाँसी में कालीमिर्च का शहद मा गुड़ के साथ सेवन बहुत ही लाभकारी है।
कालीमिर्च का सेवन करने से जुकाम के होने वाले संक्रमण की संभावना कम हो जाती है । यह हमारे प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है ।
बहुत से लोगों को पका हुआ चावल भात खाये बिना रहा नही जाता भले ही उनको कितना जुकाम क्यों न हुआ हो। ऐसे लोग चावल में कालीमिर्च, तेजपत्ता, दालचीनी और बड़ी इलायची डालकर पाकार खा सकते हैं । इससे जुकाम में राहत मिलेगी तथा भात खाने की इच्छा भी पूरी होगी।
दालचीनी
दालचीनी बहुत जुकाम-खाँसी में लाभदायक है। जुकाम में दालचीनी उबालकर पीने से बहुत राहत मिलती है ।
उबालकर दालचीनी पीने से बंद नाक खुरती है। सिर का भारीपन दूर होता है ।
लगभग एक माह तक प्रतिदिन एक चुटकी दालचीनी के चूर्ण को हल्के गुनगुने पानी में डालकर पीने से जुकाम होने की संभावना बहुत कम हो जाती है ।
प्रायः कफ प्रकृति के व्यक्तियों का शरीर स्थूल होता है । वे मोटे होते हैं । दालचीनी के सेवन से उनका कफ नियंत्रण में रहता है ।सर्दी-जुकाम नहीं होता और मोटापा भी कम होता है ।
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सोंठ/अदरक
कच्ची सोंठ ही अदरक है ।जब वह पककर सूख जाती है तब सोंठ कहलाती है। सोंठ और अदरक सहजता से घर में उपलबध हैं ।
कफप्रकृति के लोगों को गुड़ और सोंठ का लड्डू खाना चाहिये। जिसे आम भाषा में ‘सोंठौरा’ के नाम से जानते है। यह लड्डू खाँसी-जुकाम को रोकने और दूर करने में बहुत प्रभावी है ।
सोंठ को दूध में उबालकर पीने से सर्दी-जुकाम खाँसी में लाभ मिलता है तथा फेफड़ा साफ होता है।
त्रिकटु/त्रिकुट/त्र्यूषण
सोंठ, पिप्पली और कालीमिर्च को मिलाकर ही त्रिकटु बनता है। त्रिकटु बनाने के लिये इन तीनों को समान मात्रा में लेकर कूटकर चाल लेते हैं और इस चूर्ण का ही खाँसी जुकाम में सेवन करते हैं ।
लम्बे समय तक रहने वाले खाँसी-जुकाम में त्रिकटु चूर्ण बहुत लाभदायक है।
त्रिकटु चूर्ण को प्रातःकाल खालीपेट शहद के साथ ग्रहण करने से पुरानी खाँसी दूर होती है ।तथा कफ से मुक्ति मिलती है ।
शीतऋतु में इसके सेवन से बाल-वृद्ध सभी जुकाम-बुखार-खाँसी से बचे रहते हैं ।
लहसुन
जुकाम में लहसुन को भूनकर खाने से बहुत लाभ मिलता है । नाक तुरंत खुलती है तथा साँस की घरघराहट रुकती है।
यदि व्यक्ति जुकाम से पीड़ित हो और कफ न निकल रहा हो तो उसे किसी बरतन में तीन-चार चम्मच सरसो के तेल में लहसुन को भून लेना चाहिये तथा उसमें सेंधानमक डालकर गेहूँ अथवा चने और गेहूँ के मिले हुये आटे की रोटी के साथ तेलसहित खा लेना चाहिए ।खाने के लगभग 45 मिनट तक पानी नहीं पीना चाहिये।ऐसा करने से सर्दी-जुकाम में राहत मिलती है ।जकड़न दूर होती है।
लहसुन की खीर अर्थात् दूध में लहसुन उबालकर पीने ओर खाने से भी खाँसी-जुकाम दूर होता है। अष्टांगहृदयम् में लहसुन की खीर बनाने की विधि बताती गयी है ।
और पढ़ें: लहसुन की खीर
हल्दी
खाँसी-जुकाम-बुखार में हल्दी का किसी भी रूप में सेवन बहुत लाभदायक है।
कच्ची हल्दी या हल्दी का पावडर दूध में उबालकर गुड़ डालकर या ऐसे ही पीने से सर्दी-जुकाम एवं अन्य कफज रोगों में लाभ मिलता है।
हल्दी पीसकर सरसों के तेल में भूनकय खाना भी सर्दी-जुकाम खाँसी आदि में लाभदायक है।
मेथी
खाँसी होने पर जब कफ फेफड़े को जकड़ ले और घरघराहट हो ऐसे में आधा चम्मच मेथी उबालकर गुड़ खालकर पीने से बहुत लाभ होता है ।कफ परत-परत निकलकर बाहर आ जाता है ।
अजवायन/अजवाइन
जुकाम-बुखार-खाँसी में अजवाइन गुड़ और नमक डालकर सेवन करने से लाभ मिलता है। इससे बदनदर्द में भी राहत मिलती है ।
अजवायन को तवे पर भूनकर एक पोटली में बाँधकर सूँघने से बंद नाक खुलती है और कफ ढीला होकर नाक से निकलने लगता है ।
मुलहठी/मुलेठी/यष्टिमधु
मुलहठी की लकड़ी चूसने से गले में दर्द, कंठ की सूजन, खराश तथा खाँसी में राहत मिलती है ।
सरसो का तेल
सरसों का तेल खाने से सर्दी-जुकाम में लाभ मिलता है ।
सरसों का तेल नाक में और सिर में लगाने से सर्दी दूर होती है और कफ ढीला होकर निकल जाता है। सिरदर्द व आँखों की दर्द में भी लाभ मिलता है ।
देशी घी
सर्दी-जुकाम में सोचते समय नाक बंद होने पर नाक में घी लगाकर सोने से नाक खुली रहती है और सांस लेने में कठिनाई व सांस लेने से कभी-कभी होने वाली पीड़ा भी नहीं होती।
घी खाने से सर्दी-जुकाम में लाभ मिलता है। घी खाने के बाद पानी तुरंत नहीं पीना चाहिये।कालीमिर्च डालकर भी घी खामवमा जा सकता है ।
बथुवा शाक
साग के रूप में या दाल में डालकर सगपहिता के रूप में भी इसे खाया जा सकता है । बस इतना ध्यान रहे कि खाने के आधे घंटे तक पानी न पिया जाय।
बथुआ का साग जुकाम दूर करने में बहुत सहायक है। बथुआ की साग भरकर या आटे में गूँथकर मोटी रोटी बनाने और उसे खाने से खाँसी दूर होती है। कफ बनना बंद होता है । कफ निकल जाता है तथा सर्दी जुकाम नहीं होता।
उपर्युक्त बताये गये पदार्थों का सेवन जुकाम-खाँसी आदि होने पर तो लाभप्रद है ही परन्तु जुकाम-खाँसी न होने पर भी इनका सेवन करते रहने से व्यक्ति खाँसी-जुकाम से बचा रह सकता है । ये बचाव के उपाय भी हैं और उपचार भी।